कैसे बताऊंँ कौन हो तुम? स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु कविता18-May-2024
दिनांक- 18,05, 2024 दिवस- शनिवार विधा- पद्य (कविता) प्रकरण-कैसे बताऊंँ कौन हो तुम स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
तू मेरा धन, तू मेरा मन तू मेरी सांँसों की धड़कन कैसे बताऊंँ कौन हो तुम कुछ भी समझ ना आता है तुझसे, कैसा अद्भुत यह नाता है?
आंँख खुले तो तुम दिखते हो सपनों में भी तुम आते हो मन को मेरे तुम भाते हो सुखबादल सा तुम छाते हो कुछ भी समझ न आता है तुझसे, कैसा अद्भुत यह नाता है?
हर पल मैं तो तुम्हें ही चाहूँ अपने मन को मैं समझाऊँ दंभ कभी ना करने पाऊँ गहकर तेरी पाती हरषाऊँ कुछ भी समझ ना आता है तुझसे, कैसा अद्भुत यह नाता है?
तेरी खातिर अखियांँ तरसें सावन-भादो सा यह बरसें देखे तुझको बीता है अरसे पंख लगा उड़ आजा फरसे कुछ भी समझ ना आता है तुझसे कैसा अद्भुत यह नाता है?
साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
03-Jun-2024 03:12 PM
👌🏻👏🏻
Reply